Go To Mantra

तमा नू॒नं वृ॒जन॑म॒न्यथा॑ चि॒च्छूरो॒ यच्छ॑क्र॒ वि दुरो॑ गृणी॒षे। मा निर॑रं शुक्र॒दुघ॑स्य धे॒नोरा॑ङ्गिर॒सान्ब्रह्म॑णा विप्र जिन्व ॥५॥

English Transliteration

tam ā nūnaṁ vṛjanam anyathā cic chūro yac chakra vi duro gṛṇīṣe | mā nir araṁ śukradughasya dhenor āṅgirasān brahmaṇā vipra jinva ||

Mantra Audio
Pad Path

तम्। आ। नू॒नम्। वृ॒जन॑म्। अ॒न्यथा॑। चि॒त्। शूरः॑। यत्। श॒क्र॒। वि। दुरः॑। गृ॒णी॒षे। मा। निः। अ॒र॒म्। शु॒क्र॒ऽदुघ॑स्य। धे॒नोः। आ॒ङ्गि॒र॒सान्। ब्रह्म॑णा। वि॒प्र॒। जि॒न्व॒ ॥५॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:35» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:7» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:3» Mantra:5


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (विप्र) बुद्धिमान् जन (शक्र) सामर्थ्य और अत्यन्त ऐश्वर्य से युक्त राजन् ! (यत्) जो (वृजनम्) चलते हैं जिससे वा जिसमें उनकी (नूनम्) निश्चित (आ, गृणीषे) प्रशंसा करते हो (तम्) उसकी (चित्) भी (निः) निरन्तर प्रशंसा करते हो और (शूरः) भयरहित और शत्रुओं के मारनेवाले आप (दुरः) द्वारों को (जिन्व) पुष्ट करिये तथा (शुक्रदुघस्य) शीघ्र पूर्ण करनेवाली (धेनोः) वाणी के (आङ्गिरसान्) प्राणों में श्रेष्ठों को (ब्रह्मणा) बड़े धन वा अन्न से (अरम्) अच्छे प्रकार से (वि) प्रसन्न कीजिये और कभी (अन्यथा) अन्यथा (मा) न करिये ॥५॥
Connotation: - जो राजा आदि जन प्रजाओं को सुख से शोभित कर अन्याय से अन्यथा आचरण नहीं करते, वे सम्पूर्ण ऐश्वर्य्य से युक्त होते हैं ॥५॥ इस सूक्त में इन्द्र, विद्वान्, राजा और प्रजा के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह पैंतीसवाँ सूक्त और सातवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किं कर्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे विप्रशक्रेन्द्र ! यद् वृजनं नूनमाऽऽगृणीषे तञ्चिन्निर्गृणीषे शूरस्त्वं दुरो जिन्व। शुक्रदुघस्य धेनोश्चाङ्गिरसान् ब्रह्मणाऽरं वि जिन्व। कदाचिदन्यथा मा कुर्याः ॥५॥

Word-Meaning: - (तम्) (आ) (नूनम्) निश्चितम् (वृजनम्) व्रजन्ति येन यस्मिन् वा (अन्यथा) (चित्) अपि (शूरः) निर्भयः शत्रुहन्ता (यत्) (शक्र) शक्तिमन् (वि) (दुरः) द्वाराणि (गृणीषे) प्रशंससि (मा) (निः) नितराम् (अरम्) अलम् (शुक्रदुघस्य) आशुपूर्तिकर्त्र्याः (धेनोः) वाचः (आङ्गिरसान्) अङ्गिरःसु प्राणेषु साधून् (ब्रह्मणा) महता धनेनान्नेन वा (विप्र) मेधाविन् (जिन्व) प्रीणीहि ॥५॥
Connotation: - ये राजादयो जनाः प्रजाः सुखेनालङ्कृत्यान्यायादन्यथाचरणं न कुर्वन्ति ते समग्रैश्वर्येण युक्ता जायन्ते ॥५॥ अत्रेन्द्रविद्वद्राजप्रजागुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति पञ्चत्रिंशत्तमं सूक्तं सप्तमो वर्गश्च समाप्तः ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जे राजे प्रजेला सुखात ठेवतात, अन्यायाने अयोग्य आचरण करीत नाहीत ते संपूर्ण ऐर्श्वयाने युक्त होतात. ॥ ५ ॥